आन, बान, शान से निकला परमात्मा के दीक्षा कल्याणक का वरघोड़ा
आज होगी परमात्मा की प्रतिष्ठा, शिखर पर लहराएगी धर्मध्वजा
दीपक अग्रवाल 9977070200
शाजापुर। हाथों में धर्मध्वजाएं और होठों पर जैनम् जयति शासनम् के जयकारे लगाते हुए जब महावीर वंशजों की विशाल सेना शहर की सडक़ों से झूमते-नाचते हुए निकली तो शहर का माहौल आदिनाथमय हो गया। अवसर था श्रीसिद्धांचल वीरमणी तीर्थधाम के पांच दिवसीय भव्यातिभव्य विराट प्रतिष्ठा महोत्सव के चौथे दिवस आयोजित श्रीआदिनाथ भगवान के भव्य दीक्षा कल्याणक का। जिसकी शुरुआत मंगलवार को जैनाचार्य श्रीमद्विजय वीररत्न सूरीश्वरजी महाराजा तथा परम पूज्य श्रीमद्विजय आचार्य पद्मभूषण रत्न सुरीश्वरजी सहित विशाल साधु-साध्वी भगवंतों की पावन निश्रा में आयोजित विशाल चलसमारोह के रूप में हुई। यह चलसमारोह जीवाजी क्लब से प्रारंभ होकर पाइंट चौराहा, फव्वारा चौराहा, नई सडक़, आजाद चौक होते हुए ओसवालसेरी स्थित जैन उपाश्रय पहुंचकर धर्मसभा के रूप में सम्पन्न हुआ। यहां आचार्यश्री के सानिध्य में नवनिर्मित जिनालय के शिखर पर कलश, ध्वजदंड, 3 मंगलमूर्ति भगवान की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की बोलियां लगाई गई। साथ ही जिनालय एवं धर्मशाला निर्माण के सहयोगियों का बहुमान किया गया। इसके उपरांत तीर्थधाम पर परमात्मा के दीक्षा कल्याणक का जीवित चित्रण किया गया, जिसमें परमात्मा के माता-पिता बने पात्रों रूचि-सौरभ नारेलिया ने ऐतिहासिक अभिनय करते हुए उपस्थितजनों को भाव-विभोर कर दिया। रात्रि के समय प्रसिद्ध भजन गायक द्वारा परमात्मा की रंगारंग भक्ति की गई। जिसमें नवकारसी, स्वामिवात्सल्य के लाभार्थी परिवारजनों का भी तीर्थधाम ट्रस्ट मंडल द्वारा बहुमान किया गया।
राग, विराग, त्याग, वितराग और परित्याग के बाद बनते हैं तीर्थंकर।
दीक्षा कल्याणक महोत्सव के उपलक्ष्य पर आचार्य वीररत्न सूरीश्वरजी ने कहा कि राग, विराग, त्याग, वितराग और परित्याग करने के बाद तीर्थंकर पद प्राप्त होता है। परमात्मा सांसारिक जीवन के उत्कृष्ट आनंद के राग को त्याग कर वैराग्य के पथ पर बढ़ते हैं और वितरागी बनते हंै। जिस पर परमात्मा और महात्मा की कृपा होती है उसे किसी और की कृपा की आवश्यकता नही होती।
ऐतिहासिक चल समारोह ने रच दिया इतिहास
नगर की धन्यधरा पर परमात्मा के आगमन का आनंद, जोश, उत्साह और उमंग ऐसी बनी हुई है, जिसने शहर के कण-कण को धार्मिक रंग में सराबोर कर दिया है। इसका जीवित प्रमाण मंगलवार को परमात्मा के दीक्षा कल्याणक वरघोड़े में देखने को मिला, जिसमें जैनाचार्य और साधु-साध्वियों की पावन निश्रा, युवाओं की झूमती-नाचती टोलियां, हाथों में धर्मध्वजाएं लेकर चलती महिलाएं एवं अश्व रथों में सवार वरघोड़े के लाभार्थी परिवारजन वर्षीदान करते हुए शामिल हुए। उक्त चलसमारोह परमात्मा के दीक्षा कल्याणक के साथ जिन शासन के विजयोत्सव का विराट स्वरूप बन गया, जिसने नगर के इतिहास में एक नया अध्याय शामिल कर दिया।