पिता का साया
साया मेरे पिता का जब सिर से उठ गया
मानो मेरे सिर से दुआ का हाथ उठ गया
बहुत कुछ सीखा गया पिता का प्यार
कोई नहीं देता पिता की तरह दुलार
आखरी बार जब पिता से मिली
पता नहीं था ये मुलाकात है आखरी
अफसोस है पिता के गले नहीं लग पाई
गले लगकर रो नहीं पाई
पता नहीं था ये है अंतिम बिदाई
अब न होगी कभी मिलाई
याद आते है जब आती है कठिनाई
कोई नहीं पिता की तरह सहाई
साया मेरे पिता का जब सिर से उठ गया
मानो मेरे सिर से दुआ का हाथ उठ गया।
अर्चना शर्मा ‘आरची’
जकार्ता इंडोनेशिया