शाजापुर विधानसभा परिणाम मध्यप्रदेश की चुनावी चौपाल में शीर्ष पर चर्चा का विषय बना हुआ है। 28 मत के मामूली अंतर से भाजपा प्रत्याशी अरूण भीमावद ने कांग्रेस के हुकुमसिंह कराड़ा पर भारी जीत दर्ज की। यह मुकाबला काफी दिलचस्प था, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुनावी दौरे पर शाजापुर पधारे थे और कराड़ा ने भी अपनी तरफ से तैयारी पूरी की थी। चुनाव परिणामों में अंत तक सस्पेंस बना रहा और प्रदेश में सबसे कम मतों से जीतने का कीर्तिमान इस बार भाजपा ने बनाया। जातिगत समीकरण एवं अन्यान संसाधनों से लैस इस चुनाव में कांग्रेस-भाजपा दोनों की इज्जत दांव पर लगी थी तथा उनकी नीतियों पर भी लोगों की नजर थी। भाजपा प्रत्याशी अरूण भीमावद ने विजय तो बहुत कम मत से दर्ज की, लेकिन कराड़ा को कराहने के लिए पर्याप्त दर्द दे गए।
इंदर आखिर बन गए सिंकदर
सरकार की एंटी इनकमबेन्सी और अपने रूखे स्वभाव के बावजूद शुजालपुर विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी इंदरसिंह परमार ने योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद पाकर जीत का परचम लहरा दिया। माना यह जा रहा था कि स्कूली शिक्षा मंत्री होने के बावजूद इन्होने अपना सारा समय शुजालपुर और भोपाल को दिया और परीक्षा परिणाम के मामले में इनकी सफलता औसत रही। अपने कार्यकाल में प्रदेश के एक मात्र सीएम राईज स्कूल की स्थापना तो इन्होने की लेकिन अपने जिले में सीएम राईज की रेवडिय़ां बांट दी। संघ के आशीर्वाद एवं कार्यकर्ताओं की बदोलत इंदरसिंह ने अपने जीत के मार्जिन को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस प्रत्याशी रामवीरसिंह सिकरवार को 13660 मतों से शिकस्त दी जो गत चुनाव से ढाई गुना ज्यादा है।
कांग्रेसी कुणाल के पटिये उलाल
तेज तर्रार युवा चेहरा कुणाल चौधरी कालापीपल विधानसभा से अपने जीत को लेकर काफी आश्वस्त थे, उन्होने राहुल गांधी की सभा कराकर इसे और पुख्ता करने की कोशिश की थी, लेकिन एन वक्त पर जातीय समीकरण ने इनका स्वप्न भंग कर दिया। संघ के निहायत ही मामूली और साधारण कार्यकर्ता भाजपा प्रत्याशी घनश्याम चंद्रवंशी ने इन्हे पटकनी दे मारी। जिस उम्मीदवार को इन्होने अपने चुनावी भाषण में सदैव बाहरी करार दिया, उसने ही इन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया और 11765 वोटों से पराजित कर दिया। इस घमासान में खास बात यह रही कि चतुर्भुज तोमर ने अपने मत को हस्तांतरित करते हुए घनश्याम को अप्रत्याशित रूप से मजबूत कर दिया। मामला यूं तो लोगों को त्रिकोणीय लग रहा था लेकिन वास्तविकता में वह आमने-सामने की टक्कर थी जिसमें कुणाल चित्त हो गए।
जिले की तीनों विधानसभाओं पर परचम लहराने और भाजपा की अभूत पूर्व जीत उम्मीदों का पिटारा लेकर अब जनता के सामने है। देखना दिलचस्प होगा कि लाड़ली के साथ और कितनी लोक-लुभावन योजना भाजपा संसदीय चुनाव तक लेकर आती है ताकि इसका मत प्रतिशत बना रहे। मुख्यमंत्री को लेकर दिल्ली और भोपाल दोनों में चर्चा गर्म है। भाजपा अपनी नीतियों और घोषणाओं पर यदि खरी नही उतरी तो अगला चुनाव चुनौती पूर्ण होगा।