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ई-शिक्षा ! इंडिया तो पढ़ लेगा,भारत का क्या होगा?

 

 

 

 

 

 

 

  1. ई-शिक्षा ! इंडिया तो पढ़ लेगा,भारत का क्या होगा?

 

अमेरिका,ब्रिटेन,जापान,जर्मनी जैसे कई विकसित व विकासशील देशों में अधिकांशतः शिक्षण पद्धति का आधार ई-शिक्षा है, भारत भी ई-शिक्षा की और अग्रसर है। ई-शिक्षा का अर्थ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कंप्यूटर,लैपटॉप,मोबाइल,टैब,इंटरनेट आदि की सहायता से छात्रों को शिक्षित करने से है। ई-शिक्षा ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनो ही तरह से दी जा सकती है। ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षक छात्रों से कक्षा में बैठे होने पर जिस तरह नजर रखकर संवाद करते हुए शिक्षा देते है ठीक वैसे ही इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा दी जाती है। इसके विपरीत ऑफलाइन शिक्षा में छात्रों के पाठ्यक्रम के विषय विशेषज्ञों द्वारा वीडियो बनाकर शिक्षा दी जाती है इसके लिए इंटरनेट जरूरी नही है।

 

भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति

 

ई-शिक्षा के प्रसार से पहले हमें वर्तमान भारत की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालना होगा। भारत मे शासकीय औऱ निजी स्कूल- कॉलेजों में नियमित अध्यापन से छात्रों को शिक्षित कर उनका सर्वांगीण विकास किया जाता है। शासकीय स्कूल कॉलेजों में शिक्षा निःशुल्क या नाम मात्र की फीस पर दी जाती है, शासकीय स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाले अधिकतर छात्र ग्रामीण क्षेत्र,मध्यम वर्गीय या निर्धन परिवारों की पृष्ठभूमि से आते है। जब कि निजी स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों के माता-पिता आर्थिक सक्षम होते हैं जो बच्चों की तय फीस के साथ ही जरूरी संसाधन,इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि उपलब्ध करवाकर बेहतर शिक्षा के लिए सुविधा देते है।

ऑनलाइन शिक्षा की सम्भावनाएँ

 

भारत में ई-शिक्षा के बढ़ते कदम को देखते हुए हमें विचार करना होगा कि हाईस्कूल तक के छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा यदि दी जाती है तो छात्रों का ज्ञानात्मक विकास तो हो जाएगा लेकिन व्यावहारिक व भावनात्मक विकास थम जाएगा। कंप्यूटर छात्रों को सिर्फ बौद्धिक दे सकता है लेकिन शिक्षक का स्थान नही ले सकता। एक शिक्षक ही छात्रों को विषय ज्ञान के साथ ही अनुशासन, शारीरिक,मानसिक नैतिक व भावनात्मक विकास का सृजनकर्ता होता है। शिक्षक के संपर्क में होने व नियमित स्कूल जाने से ही बच्चे अनुशासन सीखते हैं जबकि कम्प्यूटर या अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से अनुशासन की शिक्षा देना सम्भव नहीं हैं अर्थात शिक्षक से ही छात्रों का सर्वांगीण व बहुमुखी विकास सम्भव है, जो कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से सम्भव नही है। ऑनलाइन शिक्षा का मुख्य दोष यह भी है कि यह छात्रों को सिर्फ ज्ञान दे सकता है लेकिन छात्रों का नैतिक व भावनात्मक विकास नही कर सकता। जब कि सामाजिक जीवन में भावनात्मक विकास अहम है , प्रारंभ से ही यदि बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के हवाले कर दिया तो वे व्यावहारिक,नैतिक,सामाजिकता व परिवार से दूर हो जाएंगे जिसके दुर्गामी परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी,समाज व देश के लिए कष्टदायी होने की प्रबल संभावना होगी? कक्षा 11वीं तक छात्रों का पर्याप्त रूप से विकास हो जाता हैं यदि हम इस समय ऑनलाइन शिक्षा की शुरूआत करते है तो परिणाम बेहतर आने की संभावना होगी। इसलिए बेहतर होगा कि हाईस्कूल तक पढ़ने वाले छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा की बजाय नियमित स्कूल में अध्यापन से ही शिक्षित किया जाए जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सकें। इसके विपरीत यदि बच्चों को शुरुआत से ही ऑनलाइन शिक्षा दी गई तो महज वे एक रोबोट की तरह ही होंगे इसलिए जरूरी है कि पहले बच्चों को परिपक्व बनाया जाए उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करना सिखाया जाए। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए विद्यार्थियों को अल्प समय के लिए ऑनलाइन शिक्षा देना मान्य है साथ ही यह भी ध्यान देना होगा कि यह हमारी नीति ना बन जाए।

 

ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतीयाँ

 

ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से गुरु शिष्य के बीच संवाद का अभाव रहने के साथ ही प्रत्यक्ष जुड़ाव समाप्त हो जाता है। बच्चों में अनुशासन का अभाव होने के साथ ही व्यवहारिक ज्ञान,नैतिक ज्ञान,सामाजिक ज्ञान, भावनात्मक विकास का अभाव होगा । जो कि शिक्षक के मौजूद होने से नियमित स्कूल जाने से ही बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास संभव है। बिना आत्म अनुशासन या संगठनात्मक कौशल के अभाव में छात्र जीवन में पिछड़ सकते हैं, छात्र बिना किसी शिक्षक और सहपाठियों के अकेला महसूस करेंगे परिणाम स्वरूप वे अवसाद से ग्रसित हो जाएंगे। लगभग 4 से 5 घंटे तक कम्प्यूटर,लैपटॉप, मोबाइल,टैब आदि के माध्यम से छात्रों की आँखों में दोष उत्पन्न हो सकता है साथ ही शारीरिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने पर ग्रामीण क्षेत्र तक ई-शिक्षा को प्रसारित करने में तकनीकी अभाव भी बाधा साबित होगी। सबसे बड़ी और मुख्य चुनौती ऑनलाइन शिक्षा के लिए इंटरनेट स्पीड है । भारत की तुलना में अन्य देशों में इंटरनेट की स्पीड काफी तेज है। ग्रामीण क्षेत्रों में अनियमित विद्युत वितरण के कारण ई-शिक्षा लागू करना कठिन होगा। देश के विभिन्न प्रान्तों में पाठ्यक्रमों की भिन्नता के कारण एक ही सॉफ्टवेयर सभी जगह इस्तेमाल करना मुश्किल होगा साथ ही इसे अपडेट करने में भी समस्या आएगी।

 

ऑनलाइन शिक्षा हेतु सुझाव

 

ऑनलाइन शिक्षा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना अधूरी है। ऐसे में निजी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के माता-पिता शिक्षा से सम्बंधित जरूरी आधुनिक उपकरण और इंटरनेट निजी खर्च पर उपलब्ध करवा देंगे। लेकिन शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले निर्धन छात्र सरकार पर ही निर्भर हो जाएंगे। इसके लिये सुझाव है कि सरकार निर्धन छात्रोंं को छात्रवृत्ति देती है ठीक उसी तरह सरकार को शासकीय स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र ई-शिक्षा की दौड़ में पिछड़ ना जाये इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति के साथ ही उपयोगी मोबाइल,टैब,लैपटॉप जैसे एजुकेशनल डिवाइस और इंटरनेट की सुविधा निः शुल्क मुहैया करवाना पड़ेगी तभी सम्भव है कि ई-शिक्षा का लाभ निर्धन छात्रो तक भी पहुँच सकेगा, अन्यथा यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ऑनलाइन शिक्षा की इस होड़ में इंडिया तो पढ़ लेगा, लेकिन भारत का क्या होगा?

 

 

दीपक अग्रवाल 99770-70200

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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दीपक अग्रवाल
दीपक अग्रवालhttps://malwanchalpost.com
प्रधान संपादक मालवांचल पोस्ट
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