मनभावन प्रतिष्ठा के बाद गुरूदेवों का पावन प्रस्थान आज
जैन परंपरा में सर्वाधिक प्राचीन है 18 अभिषेक का महाविधान-आचार्य वीररत्न सूरीश्वरजी
दीपक अग्रवाल 9977070200
शाजापुर। परमात्मा के जन्मकल्याणक के समय पांच रूप धारणकर इन्द्र महाराजा प्रभु को मेरू पर्वत पर अभिषेक के लिए ले जाते हैं और उनका भक्तिभाव सहित विभिन्न औषधियों, केसर, चंदन से अभिषेक करते हैं। जैन परंपरा में सबसे प्राचीन विधान 18 अभिषेक का महाविधान है। जिसे करने वाले पुण्यशाली के तन की अस्वस्थता, मन की अप्रसन्नता व जीवन की अशांति सब दूर हो जाती है। उक्त आशीर्वचन मालव विभूषण श्रीमद्विजय आचार्यश्री वीररत्न सूरीश्वरजी महाराजा ने शनिवार को श्रीसिद्धांचल वीरमणी तीर्थधाम पर भव्य प्रतिष्ठा महोत्सव के उपरांत आयोजित परमात्मा के 18 अभिषेक के महाविधान का महत्व बताते हुए कहे। आचार्य ने कहा कि हम जब परमात्मा के दर्शन करने जाएं तो मन से अहंकार भाव, तिरस्कार भाव और धिक्कार भाव के त्याग की कामना से परमात्मा के दर्शन करें। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।
गुरूदेव आज माकड़ोन के लिए करेंगे मंगल विहार
समाज के मीडिया प्रभारी मंगल नाहर ने बताया कि शाजापुर नगर की धन्य धरा पर निर्मित देवविमान तुल्य श्रीसिद्धांचल वीरमणी तीर्थधाम पर आयोजित विराट प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न करके मालव विभूषण श्रीमद्विजय आचार्यश्री वीररत्न सूरीश्वरजी महाराजा तथा आचार्यदेव विजय पद्मभूषणरत्नजी आदि 23 साधु-साध्वीगण रविवार सुबह नगर से विहार कर समीपस्थ ग्राम माकड़ोन पहुंचेंगे। जहां फाल्गुनी तेरस के पावन अवसर पर जैनाचार्यों का मंगल प्रवेश, गिरिराज वंदना, शक्रस्तव महाभिषेक, स्वामिवात्सल्य, महाआरती एवं संध्या भक्ति जैसे विभिन्न धार्मिक आयोजन सम्पन्न होंगे।