पुलिसकर्मियों को सिखाया सीपीआर देकर जान बचाने का तरीका, शाजापुर और शुजालपुर में हुआ प्रशिक्षण
दीपक अग्रवाल 9977070200
शाजापुर। आपातकालीन स्थिति में सीपीआर की मदद से पीडि़त व्यक्ति की जान किस तरह से बचाई जा सकती है इसको लेकर पुलिस लाइन में सीपीआर प्रशिक्षण आयोजित किया गया। शनिवार को आयोजित प्रशिक्षण में जिला मुख्यालय शाजापुर पर डॉ सचिन नायक द्वारा सीपीआर का प्रशिक्षण दिया गया। वहीं शुजालपुर में डॉ अमित सोनी ने सीपीआर की प्रक्रिया से अवगत कराया। इस मौके पर चिकित्सकों ने कहा कि सीपीआर एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फस्र्ट एड है। जब किसी पीडि़त को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और बेहोश जो जाए तो सीपीआर से उसकी जान बचाई जा सकती है। बिजली का झटका लगने पर, पानी में डूबने पर और दम घुटने पर सीपीआर से पीडि़त को आराम पहुंचाया जा सकता है। उन्होने बताया कि सीपीआर याने कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन एक आपातकालीन प्रक्रिया है जिसमें छाती के संकुचन को अक्सर कृत्रिम वेंटिलेशन के साथ जोड़ दिया जाता है। चिकित्सकों ने डेमो देकर श्वास बंद होने पर मरीजों को सीपीआर देने के तरीके बताए। प्रशिक्षण में मौके पर डमी रखी गई जिसके माध्यम से पुलिसकर्मियों में हॉर्ट अटैक आने या अन्य आपातकालीन स्थिति में मरीज को सही तरीके से सीपीआर देने और जान बचाने के टिप्स बताए गए। इस दौरान पुलिस अधीक्षक जगदीश डावर आर. आई. विक्रम सिंह भदौरिया व पुलिसकर्मी भी मौजूद रहे और उन्होंने भी सीपीआर का प्रशिक्षण लिया। चिकित्सकों ने बताया कि आमतौर पर किसी भी दुर्घटना या आपातकालीन स्थिति में सबसे पहले पुलिसकर्मी ही मौके पर पहुंचते हैं। ऐसे में यदि पुलिसकर्मी को सही तरीके से सीपीआर देना आता है तो वह हादसे के शिकार हुए लोगों की जान बचा सकते हैं। उन्होने कहा कि यदि हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पडऩे पर सबसे पहले और समय पर सीपीआर दे दिया जाए तो पीडि़त की जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इस मौके पर पुलिसकर्मियों को बताया कि सीपीआर क्रिया करने में सबसे पहले पीडि़त को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाए और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाए। इसके बाद पीडि़त की नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाए कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गई है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है। सीपीआर में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं। पहला छाती को दबाना और दूसरा मुंह से सांस देना, जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीडि़त के सीने के बीचोबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है जिससे धडक़नें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियों से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें, अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धडक़ने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाए। सांस देते समय ये ध्यान रखना है कि फस्र्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़े, ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं। ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीडि़त खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से सांस लेने लगे तब ये प्रकिया रोकनी होती है। वहीं सीपीआर यदि किसी बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ा सा बदलाव होता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर 1 साल से कम बच्चों के लिए सीपीआर देना हो तो सीपीआर देते वक्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें। शाजापुर में प्रशिक्षण के दौरान पुलिस विभाग के 170 अधिकारी, कर्मचारी सम्मिलित हुए। जबकि शुजालपुर में 85 पुलिस अधिकारी, कर्मचारी मौजूद रहे।