साक्षात्कार
श्री राजीव शर्मा (वरिष्ठ IAS)
जन्म – रंग पंचमी 1965 भिंड मध्यप्रदेश l
श्री शर्मा भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्य करते हुए आयुक्त विमानन, आयुक्त रेशम, आयुक्त हाथकरघा , सचिव नगरीय प्रशासन, सचिव पर्यावरण, कलेक्टर आदि विभिन्न पदों पर रहे , वर्तमान में शहडोल संभाग में कमिश्नर हैl प्रशासनिक सेवा के साथ ही इनकी अभिरुचि लेखन में भी है,लेखन के क्षेत्र में इन्होने कई पुस्तकें और कविता-संग्रह लिखे हैं l साथ ही इनकी रूची वन्य जीवन, ग्रामीण विकास, जनजाति मुद्दों, जल संवर्धन, जैव विविधता, हस्तशिल्प में मैदानी कार्य करने की है l इन्होंने अमेरिका, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड, यूरोप देशों की यात्रा की है l इनके द्वारा लिखित विद्रोही सन्यासी और अद्भुत सन्यासी उपन्यासो ने देशभर में धूम मचा रखी है, जो कि युवाओं की पसंदीदा किताबों में से एक हैl यहां पर प्रस्तुत है श्री शर्मा से लिए गए साक्षात्कार के मुख्य अंश –
प्रश्न – विद्रोही सन्यासी के विषय में आप पाठकों को बताए ?
उत्तर – विद्रोही सन्यासी आदि शंकराचार्य पर लिखा गया हिंदी का पहला उपन्यास है l आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी गांव में हुआ था,भक्त जिन्हें भगवान शंकर का अवतार मानते हैंl जिन्होंने 10-12 वर्ष की आयु में पैदल चलकर अखंड भारत का भ्रमण किया पूरे भारत में जाति के नाम पर,धर्म के नाम पर जो संघर्ष था उस संघर्ष को समाप्त कर उन्होंने एक सूत्र में बांधा l भारत देश को एक सूत्र में बांधने के लिए आदि शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की, जो युगो-युगो से भारत को सुरक्षित रखे हुए हैं l आदिशंकराचार्य की कहानी युवाओं को प्रेरणा देने वाली, लोगों को प्रेरित करने वाली और समाज को प्रेरणा देने वाली है l
प्रश्न – अद्भुत सन्यासी के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर – यह गाथा है एक निस्पृह योगी की, चिरंजीवी तपस्वी की, अपराजेय योद्धा भगवान श्री परशुराम की l वे आवेश अवतार नहीं थे,ना ही अंशावतार l क्रोधावतार कहकर उन्हें सीमित नहीं किया जा सकता l आज तक पृथ्वी पर उनके शौर्य की झलक है, वह उनकी साक्षात उपस्थिति में कितनी प्रभावी रही होगीl वह उस भृगुकुल के भूषण थे,जिसकी महिमा का विस्तार पवित्र नदियों और समुद्रों,पर्वतों और गहन वनों में विद्यमान असंख्य आश्रमों में ही नहीं संपूर्ण त्रेलोक में था l भगवान परशुराम के बारे में आप अन्य समाज को छोड़ दें तो वास्तव में ब्राह्मण समाज को भी कम ही जानकारी है , लोग केवल यह समझते हैं की भगवान परशुराम एक क्रोधी व्यक्ति थे जिन्होंने भगवान श्री राम के स्वयंवर में जाकर धनुष तोड़ने पर नाराजगी व्यक्त की थी,इससे ज्यादा हम नहीं जानते l इसके विपरित उनकी अद्भुत जीवन गाथा हमारे युग को भी स्वमंगल से सर्व मंगल और अराज से स्वराज हेतु प्रेरित कर सके, यही इस पावन कृति का प्रयोजन है l
प्रश्न – आपने सन्यासियों को विद्रोही और अद्भुत क्यों कहा ?
सन्यासी होता ही विद्रोही है, नियमित जीवन तो यह है कि आप शिक्षा ग्रहण करे, आजीविका ढूंढे,गृहस्थ जीवन में प्रवेश करे यह सामान्य क्रम हैl आदि शंकराचार्य ने पहला विद्रोह तो यह किया कि 10 वर्ष की आयु में घर छोड़कर वे सन्यासी बनेl दूसरा विद्रोह शंकराचार्य ने किया कि वे अपने समय की विकृत परंपराओं के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे l नरबलि,पशु बलि, जातिगत भेदभाव, धार्मिक पाखंडो से जूझने में उन्होंने किसी की परवाह नहीं की, उन्होंने बौद्ध और सनातनियो के संघर्ष को समाप्त किया और वैष्णव समाज को भी एक सूत्र में बांधा l
भगवान परशुराम अद्भुत थे, उन्होंने शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्र विद्या की कभी उपेक्षा नहीं कीl वह कोरे योद्धा नहीं थे,उन्होंने साधारण मनुष्यों को शास्त्र और शस्त्र दोनों सौंपकर यह सामर्थ्य दिया कि वह स्वयं अभ्युदय और निः श्रेयस पा सके l
प्रश्न – इतने व्यस्त रहते हुए आपको लेखन का समय कैसे मिलता है?
उत्तर – IAS तो बाद मै बाद में बना, लेखक तो जन्मजात हूं l नौकरी में आने के पहले मै अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में 15 वर्ष की आयु से 21 वर्ष की आयु तक कई कवि सम्मेलनों में भारत भर में मैंने कविता पाठ किये है l तब भी मै कविताएं, लेख, आदि लिखा करता था आज भी लिखता हूं ।
प्रश्न – आपको साहित्य सृजन की प्रेरणा कहां से मिली ?
उत्तर – मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि ही साहित्यिक और लिखने-पढ़ने वाली थी l मेरे दादाजी को मैंने अक्सर लिखते-पढ़ते देखा था उन को देख मुझे प्रेरणा मिली ।
प्रश्न– प्रशासन में रहकर आप समाज में काफी बदलाव ला सकते हैं, फिर आपके लिखने का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर– हमारे देश और संस्कृति के जो असली कर्णधार थे, वह समाज की स्मृतियों से उतरते जा रहे हैं उनकी स्मृतियां कुछ धुंधली पड़ रही है l नई पीढ़ी यह जान सके कि भारत देश पिछले कुछ सालों में नहीं बना है, यह हजारों वर्ष पुराना है l कैसे-कैसे मनीषी भारतीय संस्कृति को बढ़ाने और बचाने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष और परिश्रम किया है l उसे हम नई पीढ़ी को नहीं बताएंगे तो वह कैसे जानेगी l नई पीढ़ी को ऐसे महान लोगों के बारे में बताने के लिए जिन्होंने पूरा जीवन निःस्वार्थ और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए लगा दिया उनकी गाथा बताने के लिए लेखन ही एकमात्र प्रकल्प है l
प्रश्न – आप अभी तक कितनी किताबें लिख चुके हैं ?
उत्तर – अभी तक मैं 7 किताबें लिख चुका हूं आठवीं किताब लिख रहा हूं l
प्रश्न– यदि पाठक आप की किताबें खरीदना चाहे, तो कहां उपलब्ध है?
उत्तर – यह किताबें देशभर के प्रमुख बुक स्टार्स पर उपलब्ध है l प्रभात प्रकाशन जिन्होंने इन किताबों को छापा है, उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध है l साथ ही यदि कोई ऑनलाइन खरीदना चाहता है तो अमेजॉन और फ्लिपकार्ट के द्वारा भी मंगवा सकते हैं l
जैसा श्री राजीव शर्मा ने प्रधान संपादक दीपक अग्रवाल को बताया