अभी – अभी खबर आ रही है कि कोरोना तो ट्रेलर भर है, आने वाला जलवायु परिवर्तन इससे भी भयानक संकट उत्पन्न करेगा l कोरोना महामारी में विश्वास को हमने तार-तार होते देखा है l कफन और कपड़े चुराने वाले गिरोह से लेकर नकली रेमडीसीविर बेचने वाले पकड़े गए , यहां तक कि नकली वैक्सीन लगाने की भी खबरें आई l मानवता शर्मसार ही नहीं हुई बल्कि इंसानियत कटघरे में खड़ी हो गईl संकट के इस दौर में उपचार की स्थिति भी निराशाजनक रही और आंकड़ों पर उठे तीखे सवाल यह बताते हैं कि सच्चाई छुपाई गई है l महामारी की इस घड़ी में विश्वास दयनीय हालत में दम तोड़ता दिखा l
संकट की घड़ी में लोग लॉकडाउन, आर्थिक नुकसान और मानसिक थकान से परेशान हैl बायो बबल में रहने वालों को अब ऐसा लगने लगा है कि वे अब सर्कस के जानवर जैसे रह गए हैं जिन्हें भीड़ के मनोरंजन के लिए बाहर लाया जाता हैl
समाचार-पत्र जिसे लॉर्ड एक्टन ने प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ तब कहा था जब वह तीनों स्तंभों की यथास्थिति बनाए रखने में मदद ना करें लेकिन आज उन्हें प्राणवायु उन्हीं से मिल रही हैl वह उन्हें टिकाए रखने के लिए सारे जतन करते दिख रहे हैंl मालिक का संपादक बन जाना और उसे एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में तब्दील कर देना,उसकी त्रासदी ही कही जाएगीl पैत्रेबाजी, धोखेबाजी और सौदेबाजी के अलावा अब उसकी पहचान क्या बची है ? समानांतर सोशल मीडिया के आने के बाद आए दिन उसकी बखिया उधेड़ जा रही हैl उसके अस्तित्व से बड़ा संकट उस पर से विश्वास खोने का है,यही कारण है कि लगातार या तो अखबारों के पन्ने कम किए जा रहे हैं या संस्करण बंद किए जा रहे हैंl जाहिर तौर पर पाठकों की नींद अब अखबार से नहीं बल्कि alexa के good morning से खुलती हैl ऐसी विकट परिस्थिति में मालवांचल पोस्ट निकालने का इरादा साहसिक ही माना जाएगा l फिर भी कोशिश यही होगी कि खोया विश्वास कैसे वापस लाया जाए, रचनात्मकता की शक्ति को तिरोहित होने से कैसे बचाया जाएl एक क्षेत्र विशेष की साहित्यिक, सांस्कृतिक धरोहर को कैसे सहेजा जाए, मिट्टी की खुशबू को कैसे महसूस किया जाए जो बारिश में उसे पहचान देती है और विश्वास जगाती है कि कुछ नया, सृजनात्मक कैसे किया जाए और बताती है जीवन जीने योग्य है l